सपनों की कीमत: एक रिक्सा चालक के बेटा बना IAS अधिकारी--Story Of IAS Govind Jiswal
जब हालत आपको खिलाफ हो, जेब में पैसा न हो, लेकिन आँखो में सपने और दिल में जज़्बा हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती। यह सच्ची कहानी है IAS Govind Jaiswal की, जिसने गरीबी की बेड़ियों को तोड़कर, मेहनत की चट्टान को चीरकर और संघर्ष की नदी को पार करके अपने सपनों को साकार किया
बचपन की कठिनाइयाँ
गोविन्द का जन्म वाराणसी में हुआ, उनके पिता जी नारायण जायसवाल एक रिक्शा चालक थे और उनकी माँ घर के कामो के लगी रहती थी और तीन बने थी, गोविन्द जब बड़े हो रहे थे तब उनके माता पिता बोलते थे की उसको एक ऑटोरिक्शा खरीद कर देंगे चलने के लिए ओ रिक्शा नहीं चलाये गा। पर गोविन्द के किस्मत में तो IAS बना लिखा था हुआ यो एक दिन गोविन्द आपने दोस्त के घर खेल रहे थे तब तक दोस्त के पिता जी वहा आ गये और गोविन्द से पूछे की पिता का क्या नाम है तो उन्होने बोला की नारायण जयसवाल है तो पूछे की क्या करते तब तब बातए की रिक्शा चलते है तोयह सुन कर गोविन्द को धक्का देकर बहार निकला और गाली देने लगे तब जोविन्द ने शिक्षक के पास जक कर उनसे से बोले तो वो बोले की कोई बड़ा आदमी बनो तब तुम्हे कोई आपने घर से बहार नहीं निकल ले गा और तुम्हारे नाम से पिता जी को जानेगे और हर घर में आना जाना रहे गा तब गोविन्द पूछे की क्या करना होगा तब शिक्षक ने बताया की भारत का सबसे बड़ा एग्जाम IAS का होता उसको निकल लो तब बात बनेगा। तब गोविन्द दिन रात एक करके 10th का एग्जाम दिया और कुछ समय बाद 12th के एग्जाम देने के बाद कुछ कुछ पैसे जोर कर किताब ख़रीदा
संघर्ष की राह गाँव में
गोविन्द जब अपने सपने घर वाले को बताये और बोले की हम ऑफिसर बनगे तब घर वाले मान गए, पिता जी बोले की तुम पटवारी का या हवलदार का जॉब ले लो अच्छा है क्युकी पिता जी को वही नौकरी बड़ा लगता था मगर गोविन्द को IAS ही बनाना था कुछ दिन बाद गोविन्द के माँ का मृत्यु हो जाता है तब उनकी बड़ी बहन में आपने पढाई छोड़ दी और गोविन्द के ऊपर फोकस किया कुछ समय बाद गोविन्द ने सोचा की उसे दिल्ली जा कर तैयारी करना चाहिए तब उसने आपने पिता से बोला की हमें कुछ पैसा चाहिए तैयारी करने के लिए लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे तब पिता जी के पास थोड़ा सा जमीं था उसे बेच दिए चालीस हजार में और कुछ पैसो से अपना इलाज करवाए क्युकी पिता जी पैरो से चल नहीं पा रहे थे और कुछ पैसा गोविन्द के तैयारी के लिए दे दिए पैसा लेकर गोविन्द निकल गए अपना IAS बनने के सपनो को लेकर वह घर पर बोलकर निकले की बस यह पढाई 2 साल का है
संघर्ष की राह दिल्ली में
जब गोविन्द दिल्ली आया तो आपने दोस्त के साथ रूम खोजने निकल गया काफी रूम देखने के बाद एक सस्ता सा रूम मिला पर खाना भी तो खाना था तब टिफिन बुक किये और अच्छा से पढ़ने लगे पर कुछ महीने बाद पैसे की दिक्कत होने लगा तब जाकर वे आपने टिफिन को आधा किये और कोचिंग भी पढ़ने लगे पर उनके पिता का तबीयत बहुत ख़राब हो गया और चल भी नहीं पा रहे थे और रिश्तेदार ने फ़ोन कर के यह भी बोले की तुम्हारे पिता का तबियत बहुत ख़राब है और तुम दिल्ली में मस्ती कर रहे हो पर गोविन्द चुप चाप सुनते रहे और आपने पढाई जारी रखे
सपने का पहला एग्जाम
जब गोविन्द पहला फॉर्म भरे यूपीएसी और यूपी पीसीएस और एग्जाम दिए कुछ समय बाद रिजल्ट आया तब वो कोचिंग पढ़ा रहे थे तब उनका यूपीएसी का पहला एग्जाम Prelims और यूपी पीसीएस का भी Prelims निकल गया और गोविन्द अब Mains एग्जाम का तैयारी करने लगे ओ इतना फोकस एक्साम को लेकर थे की नींद ना आने के लिए रात भर चल कर पढाई कर रहे थे, फिलॉसफी के पेपर के लिए तैयारी कर रहे थे तब रात में चलने के वजह से पैर कट गया और खून भी आने लगा तभी भी उस दिन 72 घंटे की पढाई की और एग्जाम दे कर आने के बाद उनका तबियत बहुत ख़राब हो गया, कुछ समय बाद रिजल्ट आया तो वे Mains एग्जाम में पास हो गए और Interview का तैयारी करने लगे और Interview में जाने के लिए उसके पास कपड़े नहीं थे तब जाकर आपने दोस्त से जूता और टाई लिए और आपने बहन को बोले की दीदी कपड़े लेना था तब दीदी ने अपना दवा न लेकर कपड़े के लिए पैसा दे दिए तब गोविन्द जाकर Interview में बैठ पाये
सपने हुए साकार
एक महनी बाद रिजल्ट आया तो किसी ने कॉल किया और बोला की 48 रैंक आया तब जाकर गोविन्द ने चेक किये और आपने दीदी को कॉल लगाए और बोले की दीदी आपका भाई कलेक्टर बन गया और दोनों रोने लगे फिर देखा की समाज कैसे बदलते है सब को कॉल मैसेज और घर पर आने लगे बधाई देने के लिए जो लोग कभी पूछते भी नहीं थे वे सब भी आने लगे बधाई देने के लिए
घर आने के बाद
जब गोविन्द दिल्ली से घर आये तो स्टेशन पर ट्रैन से उतरते ही देखा की सब लोग ढोल बजा रहे है और गोविन्द को फूलो से स्वागत कर रहे है और दूर दूर तक के सारे नेता लोग घर आये गोविन्द और उनके पिता जी को बधाई दिया तब जाकर गोविन्द को लगा की समाज में उनको कोई निचा नहीं समझेगा, अब कोई नहीं बेध-भाव का रहा था की तुम एक रिक्शे वाले के बेटा हो अब हर कोई जान रहा था की वो एक IAS अधिकारी है
प्रेरणा सबके लिए
"सपने देखने वाले को कभी हर नहीं होती है।" क्युकी गोविन्द सपना नहीं देखता तो वो आज IAS अफसर नहीं बन पता, उसको लगा की हमको ऑटोरिक्शा नहीं चलना है बल्कि इतना बड़ा इंसान बनना है की कोई भी हमें आपने घर से बहार नहीं निकले
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Good Inspirational story
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